बाजार में एक सोनू हलवाई की दुकान थी उसकी मिठाई पुरे शहर में महशूर थी | सारे के सारे लोग उसी से मिठाई लेते थे |
एक दिन के बात है इसकी मिठाई की दुकान के सामने से एक हाथी गुजरा | यह देखा सोनू हलवाई ने उसे दो केले दिए | हाथी ने दोनों केलो को खा लिया और वहा चल दिया, कुछ देर बाद हाथी को पियास लगी और वो पास के ही एक तलाब की और चल पड़ा |
वह पहुच कर उसने खूब पानी पिया और खूब सारा नहाया | आते समय हाथी ने एक फूल तोडा और उस हलवाई को दिया जिसने उसे गो केले दिए थे | फूल पा कर सोनू हलवाई वहुत खुश हुआ |
अब यह सिलसिला हर रोज चलता, सोनू हलवाई उसे कुछ न कुछ खाने को देता और हाथी उसे हर रोज एक फूल देता | एक दिन के बात है सोनू हलवाई को एक शरारत सूझी | उस दिन जब हाथी ने अपनी सुड खिड़की के अंदर डाली तो सोनू हलवाई ने उसकी सुड ने लाल मिर्च डाल दी | हाथी बहुत जोर से चिलाया और तलाब के तरफ दोडा |
तलाब पहुच कर वह खूब नहाया और अपनी सुड में गंदा पानी भर लिया और सोनू हलवाई की दुकान की तरफ चल पड़ा | वहा पहुच कर उसने सारा गन्दा पानी उसकी मिठाइयो पर फ़ेंक दिया और उसकी सारी मिठाई खराब कर दी |
यह देखर सोनू हलवाई बोला, अरे हाथी, यह तूने क्या कर दिया ?”
पास बेठे एक दुकान के आदमी ने बोला, “तो तूने किया, सो उसने किया | तुमने ने भी तो उसकी सुड में मिर्ची डाल दी थी तो उसने भी तुम्हारी सारी मिठाई खराब कर दी | यह तो तेरी ही करनी का फल है |”
कहते है न – “जैसे करनी वेसी भरनी”