बहुत पुरानी बात है एक बार नारदजी की प्रथ्वी – भ्रभन के दोरान अपने एक भक्त से मुकालात हुई | वह बहुत परेशान था अपनी पत्नी से इसलिए उसने नारदजी से प्राथना की उससे अपनी कर्कश-लड़ाकू पत्नी से बचा लो| उन्होंने उसको वादा किया और कहा ठीक है में तुम्हारी मदद करुगा परन्तु पहले में स्वर्ग जायेगे | नारदजी उसे अपने साथ ले गए और स्वर्ग के दरवाजे के बाहर बिठा दिया और खुद स्वर्ग के अंदर चले गए |
वह आदमी वहा पड़े के नीचे खड़ा ठंडी हवा खा रहा था की उसके मन में एक विचार आया की काश मेरे पास एक कुर्शी होती तो में यहाँ पेड़ के नीचे बेठ जाता | उसी समय उसके पास कुर्शी आ गुई क्योकि वह कल्पव्रक्ष के नीचे बेठा था पर इच्छा-पूर्ति के लिए प्रसिद था | कुछ देर बाद उसने सोचा “मेरे पास एक सोने का पंग होता जिस पर में सो सकता और अगले ही पल उसके पास पलंग आ गया और वो उस पर सो गया | अगले ही पल उसने सोचा काश यह कोई मेरे पैर दबा दे और देखते ही देखते वहा पर दो सुंदर अप्सराये आ गुई और उसके टांगे दबाने के लिए प्रकट हो गई |
थोड़ी देर बाद उसने अपनी पत्नी का स्मरण हो आया और उसने सोचा, “अगर मेरी पत्नी ने मुझे इन दो इस्त्रियो के साथ देख लिया तो मुझे मार ही डालेगी |” और उसी समय वहा उसकी पत्नी प्रकट हो गई एक मोटे डंडे के साथ | जैसे ही उसने अपनी पत्नी को देखा, वह पुरु जोर से उठ कर वहा से भागने लगा | यह देख कर उसकी पत्नी भी उसके पीछे पीछे हो ली |
तभी नारदजी भी वहा आ गए | वे यह सब देख कर ही समझ गए और बोले, अरे मुर्ख तुम्हे पूरी बाते सोचने की जरूरत ही क्या थी | तुम्हे बता नहीं की बुरी बाते हमेशा जीवन ने कष्ट ही लाते है |
सीख: जीवन हमेशा अच्छी बाते बोलनी और सोचनी चाहिए |