समझदार की कभी हार नहीं

एक कबूतर था | वह अपनी मादा के साथ एक पेड़ पर घोंसला बना कर रहता था | उसी पेड़ के नीचे एक जहरीला सांप रहता था | कबूतरी जब – जब अंडे देती, तब – तब सांप उसे खा जाता था | इससे दोनों बहुत दुखी रहते थे |

वो हमेशा डरते रहते थे उस सांप से | फिर एक बार कबूतरी का अंडे देने का समय आया | उसने कबूतर से कहा, सुनो, क्या हम किसी दुसरे पेड़ पर अपना घोंसला बनाये क्योकि यहाँ जब भी हम अंडे देते है तब वो हमारे सारे अंडे खा जाता है |”

यह सुनकर कबूतर बोला, “नहीं हम अपना घर छोड़ कर क्यों भागे, अगर वहा भी कोई सांप हुआ तो क्या करेगे हम | परेशानियों को हल करना चाहिए न की उसे भागना चाहिए | हम कोई उपाय सोचते है |”

वाही पेड़ के पास के तलाब था | एक दिन उस तलाब से एक राजकुमार स्नान करने आया | उसके साथ उसके अंग रक्षक भी थे | राजकुमार ने अपने कपड़े और मोतियों की माला उतार कर सरोवर के पास रख दिए और वो तलाब में नहाने चला गया |

यह सब देख कर कबूतर को एक उपाय सुझा, वह वहा गया और मोतियों की माला अपनी चोंच से उठाया और उस सांप के बिल के पास जा कर रख दिया और फिर उसकर अपने घोंसले के पास जा कर बेठ गया |

राजकुमार जब नहा के बहार निकला और अपने कपड़े पहने तो उसे वहा अपना हार नहीं मिला तो उसने अपने सिपाहियों को आदेश दिया उसे ढूंढने का | सेनिको को हार खोजते – खोजते उसे पेड़ ने नीचे पहुचे | वहा उन्होंने उस सांप और हार को देखा | सेनिको ने फोरन सांप को मार डाला और राजकुमार को उनका हार दे दिया  |

सांप को मरा देख कर कबूतर और उसकी मादा का ख़ुशी का टिकाना न था | कबूतर ने अपनी कबूतरी से कहा, “लो आज हम ने अपनी परेशानी को सुलझा दिया  तुम तो यहाँ से जाना चाहती थी लेकिन अक्ल हो तो कोई न कोई रास्ता जरुर निकल आता है |”

सीख: इन्सान को हमेशा अपनी अक्ल से काम लेना चाहिए |

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