सिंहासन का सच

एक नगर था सुंदरनगर | वहा के राजा बहुत उदास रहता था और जब – जब उदास रहता था उसकी प्रजा भी उदास रहता था और जब वो खुश रहता था तो उसकी प्रजा भी खुश रहती थी इसलिए राजा के पास लोगो का आना जाना लगा रहता था उसको खुश रखने के लिए | लेकिन दिक्कत यह थी की राजा खुश ही नहीं होता था |

एक दिन की बात है दरबार में एक व्यक्ति आया | उसका नाम महेश था | उसने राजा के सामने कुछ ऐसा कहा की राजा को हंसी आ गई |

महेश बहुत हसमुख सभाव का था | वह किसी भी बात को मजाक में बदल देता था | राजा ने उसको अपने पास ही रख लिया |

महेश को आज तक किसी ने भी दुखी नहीं देखा था | उसके साथ जो भी रहता, वो उसे हसा – हसा का पागल कर देता था |

एक दिन की बात है दरबार चल रहा था की अचानक राजा को महेश की चिल्लाने की आवाज सुनी | ऐसा लग रहा था की मनो जोर – जोर से रो रहा हो |

राजा दरबार छोड़ कर उसके पास गए और देखा की उसके सेनिक उसकी बुरी तरह से पिटाई कर रहे थे | राजा को यह देख कर बहुत गुस्सा आ गया और जोर से बोले, “छोड़ तो इसे तुम, तुरंत” |

सेनिको ने उसे छोड़ दिया और खड़े हो गए | राजा ने पूछा, “तुम लोग इसे क्यों मार रहे थे?”

सेनिको ने कहा, महाराज, “महेश, आपके सिंहासन पर बेठा हुआ था | यह तो अच्छा हुआ की हम लोगो ने इसे देखा लिया |”

राजा बोला, “हमे महेश पर पूरा भरोसा है की अगर उसने ऐसा किया भी होगा तो हमारा अपमान करने के लिए नहीं|”

यह सुनकर सेनिक वहा से चले गए और परन्तु महेश फिर भी रोता रहा |

उसका रोना सुनकर राजा को भी गुस्सा आ गया और बोले, “अब, क्यों रो रहे हो | मैंने सेनिको को भेज तो दिया है |”

महेश बोला, “महाराज, अब में अपने लिए नहीं आप के लिए रो रहा हु?”

यह सुनकर राजा को आश्चर्य हुआ, और पूछा, “हमारे लिए”

महेश बोला, “जी, राजा जी, एक बात सोच – सोच कर बहुत दुखी हो रहा हु | की में सिर्फ थोड़ी देर के लिए इस पर बेठा और मेरी इतनी पिटाई कर दियो इन लोगो ने | आप को इस सिंहासन पर बरसों से बेठो हो, आपने कितना दर्द सहा होगा |”

यह सुनकर राजा को बहुत तेज हसी आ गई और सारा गुस्सा गायब हो गया |

 

 

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