एक गाँव में एक किसान रहता था एक दिन की बात है वह से उस राज्य के राजा गुजर रहे थे तो उन्होंने हरी को खेतो में काम करते देखा और उस किसान से पूछा, “तुम इतनी मेहनत करते हो, एक माह में तुम कितना कमा लेते हो?”
हरी ने उत्तर दिया, “महाराज, इतना के गुजर-बसर हो जाता है |”
फिर राजा ने पूछा, “तुम उस पैसो का क्या करते हो|”
हरी ने उत्तर दिया, “महाराज, में उन पैसो के चार हिस्सा करता हु |”
राजा ने हेरत से पूछा, “चार हिस्से”
हरी ने कहा, “जी महाराज, पांच हिस्से, एक हिस्सा राज्य का कर चुकाने में जाता है, दुसरे हिस्से में उधार दे देता हु, तीसरा हिस्सा में घर का खर्च चलाता हु, चोथा हिस्सा में खेतो पर लगता हु, और आखरी हिस्सा में दान में दे देता हु|”
राजा को हरी की बात सुनकर, हेरान रह गया | उसको हरी की बातो पर यकीन नहीं हो रहा था |
राजा ने फिर से पूछा, “ एक हिस्से में तुम राज्य का कर देते हो, दूसरा हिस्सा घर पे देते और तीसरा हिस्सा खेतो पर लगते हो लेकिन, चोथा और पांचवे वाली बात समझ में नहीं आई |”
हरी बोला, “महाराज, मेरे माता-पिता ने मुझे एक लायक बनाया की में अपन और अपने परिवार का पालन पोषण कर सकू |
उन्होंने मुझे जो कुछ भी सिखाया, वह मेरे ऊपर उधार है | तो बस में उनकी सेवा करके, उनके उधार को कम करने की कोशिस करता हु |
रही बात दान करने की, तो यह हिस्सा में अपनी बेटी के लिए खर्च करता हु | जब वह बड़ी होगी, तब में उसका विवाह कर दुगा | इसलिए में जो भी उसके लिए करुगा, दान समझ कर ही करुगा |
पूरी बात समझने के बाद महाराज बहुत प्रसन्न हुए और उसको अपना न्यायमंत्री नियुक्त कर लिया |