कोयल को पड़ा महगा, गीत गाना

एक कोयल थी जिसका नाम सुनहरी था वह बहुत लम्बा सफ़र करके एक जंगल पहुची, वहा एक पेड़ देख कर वहा रहने लगी | परन्तु वहा कुछ और पक्षी भी रहा करते थे उनको यह बात गवारा नहीं हुई | सब पक्षियों ने मिल कर उसे वहा से भगा दिया |

अगले दिन कोयल जंगल के बाहर एक पेड़ पर बेठी हुई थी जंगल में रहने वाली एक और कोयल ने उसे देखा और उसकी उदासी का कारण पूछा | सुनहरी ने उसे सारी बात बताई |

दूसरी कोयल ने कहा, परन्तु मेरे साथ तो ऐसा नहीं हुआ | में तो एक पेड़ पर बेठी और फिर गाना सुरु कर दिया | तभी मेरे चारो तरफ पक्षियों की भीड़ इकठी हो गई और गाना खत्म होने के बाद मुझ से पूछा, “तुम क्यों गा रही हो?”

यह सुनते ही सुनहरी बोली, यही मेरे साथ हुआ था कल, और मेने उतर दिया में इसलिए गा रही हु क्योकि मुझे गाना अच्छा लगता है और में बिना गाना गाये नहीं रह सकती | सब यह सुनते ही सभी पक्षियों ने मुझे मरना शुरू कर दिया | में वहा से अपनी जान बचा कर भागी | “

यह सुनते ही दूसरी कोयल बोली, “यही तो तुमने गलती की | सभी ने यह सोचा होगा की उम पागल हो, बिना बात के गाती रहती हो | और उन्होंने सोचा होगा की अगर तुम यहाँ रुक गई तो सुबह श्याम गाती ही रोहो गी |”

बहन तुम्हे पता है मेंने क्या कहा था जब मुझ से यह सवाल किया था “की तुम क्यों गति हो?”

बताओ बताओ, तुम ने क्या कहा था, सुनहरी ने पूछा |

मैंने उन से कहा, “में इसलिए गा रही हु क्योकि तुम मेरे गीत सुनकर खुश रह सको | और पता है यह सुनते ही उन्होंने मुझे अपना लिया | बहन याद रखो अपनी आदत को दुसरो पर मत थोपो, ऐसा काम करो जिसमे तुम्हारा भी भला हो जाए और दुसरो का भी |

और यह कहते हती वह कोयल का से फुर करके उड़ गई |

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