कैसे मिला राजा हरिश्चंद्र को देवन्द्र का पद

प्राचीन समय की बात है एक बहुत प्रसिद राजा हरिश्चंद्र थे उन्होंने अश्वमेघ आदि अनेको यज्ञो का अनुष्ठान कर याचको को भरपूर दान दिया | प्रजा ऐसे धर्मात्मा राजा को पाकर अत्यंत प्रसन्न थी | इस प्रकार हरिश्चंद्र धर्म और कर्म दोनों में बड चड कर आगे रहते थे | पूरी जिन्दगी बहुत ही अच्छे से बिताई | फिर व्र्दावस्था में उन्होंने वैराग्य जीवन ग्रहण किया और गंगा के संगम पर घोर तपस्या करना शुरू कर दिया |

एक बार की बात है राजा हरिश्चन्द्र ने अपने शासनकाल में सम मानक एक भंयकर और शक्तिशाली देती को रणभूमि में मार भगाया था | उनके भय से वह देत्य वहा से भाग गया और चुप गया | जब उसे पता चला की राजा हरिश्चंद्र ने राज –पाठ छोड़ दिया और गंगा किनारे जा कर साधन कर रहा है तो उसके मन में बदला लेने का सोचा | वह एक सुंदर स्त्री का रूप धारण करके उसके पास गया ओ प्रेम भरे स्वर में बोला, “ हे राजन ! में देव लोक की अप्सरा हु में धरती पर आप के लिए आई हु | आप के बल – पोरुष की बहुत प्रशंसा सुनी है | आप के अतिरिक्त इस संसार में कोई नहीं है मेरे लायक | इसलिए में अपने आप को आप के चरणों में अर्पित करती हु | आप इस दासी को स्वीकार करे |”

उसकी मीठी मीठी बाते सुनकर राजा हरिश्चंद्र उस पर मोहित हो गए | उन्होंने काम कर अधीन हो कर अपना तप त्याग दिया और उसके साथ भोग में लीं हो गए | जब सम को यह अहसास हो गया की राजा हरिश्चंद्र की तपस्या भंग हो चुकी है तो अपनी सफलता का प्रसन्न होकर वह वहा से गायब हो गया |

वहा राजा हरिश्चंद्र सम की माया से अनभिज्ञ थे | अत: वे उसके वियोग से दुखी हो गए | और उसी समय वहा विष्णु जी प्रकट हुए और बोले, “हे राजन ! तुम जिसके वियोग में दुखी हो रहे हो, वः तो तुम्हारा शत्रु सम था जो तुम्हारी तपस्या भंग करने यहाँ आया था | यह सब उसकी माया थी | तुम उसका शोक मत करो | तुम अपनी तपस्या जारी रखो |

यह सुनकर राजा हरिश्चंद्र भगवन शिव की स्तुति करते हुए बोले, “ हे प्रभु ! आप संसार में सवर्त्र विधमान है | आपकी जय हो | आप अपने बच्चो की सभी अभिलाषा पूरी करते है | हे प्रभु कृपया करके मुझ पापी और अज्ञानी मनुष्य को भी दर्शन दे |”

भगवन शिव उनको आराधना और भक्ति से प्रसन्न हो कर भगवन शिव प्रकट हुए और उनसे वर मागने को कहा | राजा हरिश्चंद्र ने उनसे इंद्र पद प्रदान करने की विनती की | भगवान शिव ने तथास्तु कहे कर वहा से चले गए | इस प्रकार भगवन शिव की कृपा से राजा हरिश्चंद्र देवन्द्र पद पर सुशोभित हुए |

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