जीने की चाह

आज जो कहानी में लिखने जा रहा हू वो बिलकुल सत्य है | यह कहानी जायदा पुरानी नहीं है एक परिवार था जिसमें पति – पत्नी और उनके तीन बच्चे २ लड़के और १ लड़की है | बहुत ही खुश थे वो लोग और अपनी ज़िन्दगी अच्छी तरह से व्यतित कर रहे थे | पति अपने दफ्तर जाता, पत्नी घर पर रहती और बच्चे भी अपने काम पर जाते | अच्छे से व्यतित कर रहे थे अपना जीवन | पर एक दिन पति को कुछ तकलीफ हुई और वो डॉक्टर के पास गए, डॉक्टर ने उन्हें कुछ test कराने को कहा और उन्होंने कराये भी | उनको इसका अनुमान भी ना था की उनको हुआ क्या है, और तभी डॉक्टर ने कहा की आप के पेट में एक मास का टुकडा है जिसका अकार एक गेंद की भांति है | और यह cancer है पर वो इन्सान बिलकुल भी नहीं डरा और घबराया क्योकि उसको जीने की चाह थी | जिमेदारी थी उसके कंधो पर, उसने डॉक्टर को कहा: डॉक्टर साहब आप बस मुजहे दवाई दी जिए बाकि सब में संभाल लुगा | फिर उस व्यक्ति ने दवाई लेनी शुरू कर दी और अपनी ज़िन्दगी व्यतीत करने लगा | जैसे उसको कुछ हुआ ही नहीं था एक आम आदमी की तरह अपनी ज़िन्दगी व्यतीत कर रहा था उसकी बेटी की शादी तो पहले ही हो चुकी थी अब उसने अपने पहले बेटे की भी शादी कर दी, धीरे-धीरे वक़्त बीतता गया और 6 साल बीत गए इस बात को | अब वो अपनी सरकारी नौकरी से भी retire हो चुका था | अब उस व्यक्ति ने अपने छोटे बेटे की शादी भी तय कर दी थी पर अब उसकी हालत पहले जेसी नहीं थी, वो शरीर से बहुत जादा कमज़ोर हो चुका था | जयदा घूम फिर नहीं सकता था पर फिर भी उसने कभी किसी से इस बात का जीकर नहीं किया, बस अपनी जिमेदारी घर के लिए और जिस संस्था से जुड़ा हुआ था उसके लिए काम करता चला गया |

उसने अपने छोटे बच्चे की भी शादी कर दी, पर उसकी हालत धीरे – धीरे और ख़राब होती चली गई | घर वालो के लाख कहने पर उसने फिर से किसी और डॉक्टर को दिखाया और कुछ test करवाए | परंतु अब की बार जो डॉक्टर ने कहा, वह सुन कर वो कुछ पल के लिया सेहम गया, पर उस वक़्त तो उसने अपने आप को संभाल लिया परंतु मन ही मन में वो डर सा गया और यही वक़्त था जब उसका डर उसकी जीने की चाह पर भारी बढने लगा | उस व्यक्ति को अब की बार lung cancer हुआ था | दोस्तों इन्ही चाँद लम्भो ने उसकी ज़िन्दगी बदल दी | अब धीरे धीरे उनकी हालत और बिगडती चली गई और वो बिस्तर को पकड़ने लगा | अब वो जायदा बिस्तर पर ही लेटा रहता था | अब की बार उनके घर वाले भी बहुत जायदा डर गए थे काफी क्योकि उस व्यक्ति ने अपनी जीने की चाह ही छोड़ दी थी, वो जीना ही नहीं चाहते थे मनो उन्होंने अपने मन में ये ठान ही लिया था की वो अब ठीक नहीं हो सकते | घर वालो ने भी और उनके डॉक्टर जिन से वो पहले दवाई  लेते थे उन्होंने भी उनको जोश, नई उम्मीद दिलाने की बहुत कोशिश की परंतु सब बेकार था | धीरे – धीरे उनकी हालत और बिगडती चली गई और इसी साल के जनवरी माह: की 5th को उनका स्वर्गवास हो गया और उसी दिन एकादशी भी थी | कहते है की जो इन्सान एकादशी वाले दिन जाता है वो बहुत भी भागयेशाली होता है | उनकी मर्त्यु के पछचात जैसे मनो सब थम सा गया हो | सभी घर वाले और उनकी संस्था वाले लोग विलाप करने लगे और साथ ही साथ भगवान का कीर्तन करने लगे

“हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे

हरे राम हर्फे राम, राम राम हरे हरे“

उनकी संस्था के लोग इसी मंत्र का जाप किये जा रहे थे जैसे मनो “मेरे पास शब्द नहीं है उस वक़्त को बयान करने के लिये” | पर मानो वो मंत्र जैसे उनके परिवार वालो को एक शक्ति दे रहा हो | उस पिता के छोटे बेटे ने थोड़ी हिमत दिखाई, वो जानता था की किसी ना किसी को हिमत करनी होगी ताकि उनकी अंतिम यात्रा हो सके | वो ऊपर से तो बहुत कोशिश कर रहा था ना रोने की क्योकि वो अपनी मा, भाई, बहन को होसला दे सके, परन्तु मन ही मन वो बहुत टूट चूका था और अभी तक वो संभल नहीं पाया है | सभी लोग अपने कर्त्व्ये पूर्ण करके घर वापस आ गये | उनके जाने के बाद सभी  लोग उनके घर वालो की होंसला देने लगे | उनके जाने के बाद मानो सभी परिवार वालो की भी जीने की चाह नहीं रही थी सभी के सभी घर वाले टूट चुके थे और अभी तक वो संभल नहीं पाए है | हर वक़्त ऐसा लगता है की अभी वो कीर्तन कर के वापस आ जायगे पर वो नहीं आए | और उनकी राह आज तक उनका परिवार देखता है | जैसे वो अभी आ जायगे | ये बात वो भी जानते है जो जाता है वो वापस कभी नहीं आता | पर उस मन को कैसे समझाए, जो जान कर भी अनजान बन जाता है |

दोस्तों में ये कहानी आप लोगो के साथ बाटने का सिर्फ यही मकसद है की जीने की चाह बहुत ज़रुरीर होती है वो जीने का जस्बा हमेशा इन्सान के अंदर होना चाहिये, जाना तो सभी ने है एक ना एक दिन पर हम हार कर क्यों जाए, अपनी ज़िन्दगी जी कर जाए | अगर उन्होंने भी अपनी जीने की चाह ना छोड़ी होती तो शायद वो हमारे बिच में होते और अपने परिवार वालो के साथ हंस बोल रहे होते |

शायद अभी आप उनके परिवार वालो का दर्द ना महसुस ना कर पाए क्योकि ये ऐसा दुख है जिसके साथ होता है वही इस दर्द जो जान पाता है |

मुख्य बात: जो भी इस blog को पड़ रहे है अगर उनमें से किसी को भी कुछ बीमारी है तो मेरी आप लोगो के चरणों में एक छोटी सी विनती है की जिंदगी बहुत ही प्यारी है | बस हमे सलिखा आना चाइये उसको जीने का, और अपनी जीने की चाह को कभी काम नहीं करना चाहिये और अगर आप ऐसा करते है तो आप खुद महसुस करेगे की आप अपनी बीमारी से ठीक हो रहे है|

ध्यन्वाद

लेखक: युग्म जेतली

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