बहुत पुरानी बात है | एक बहुत प्रसिद गुरुकुल था | दूर दूर के गाँवो से बच्चे वहा पड़ने आते थे | आश्रम में जो गुरु थे वो भी बहुत विद्वान और यशस्वी थे |
एक दिन की बात है आचर्य ने अपने सभी शिष्यों को बुलाया और कहा, “प्रिये शिष्यों, मेने तुम्हे आज एक विशेष कार्य ले लिए यहाँ पर बुलाया है | शिष्यों मेरे सामने एक बहुत बड़ी समस्या आ पड़ी है | मेरी पुत्री विवहा योग्य हो गई है और मेरे पास उसके विवहा करने के लिए घन नहीं है | मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है की में क्या करू?”
उन सभी शिष्यों में से कुछ शिष्य धनि परिवार में से थे और वो आगे बढ़ के बोले, “गुरुदेव अगर आप की आज्ञा हो तो हम अपने घर में से ले आते है धन और फिर आप अपनी पुत्री का विवहा कर देना |
आचर्य बोले,” अरे नहीं अरे नही वत्स, ऐसा नहीं हो सकता है |”
शिष्य बोले, “गुरुदेव ऐसा क्यों नहीं हो सकता, आप उसे हमारी तरफ से गुरु दक्षिणा समझ लेना”
इस पर गुरुदेव बोल, “नहीं वस्त, तुम्हारे घर वाले सोचेगे की तुम्हारे गुरु लालची हो गए है | वो धन ले कर विध्या देते है |”
सभी शिष्यों ने पूछा,” फिर क्या किया जाए गुरुदेव, जिस से आप की पुत्री का विवहा हो सके” | गुरुदेव कुछ देर सोचने के बाद बोले, “हा एक तरीका है | ऐसा करो तुम धन ले कर तो आओ परन्तु मांग कर नहीं | इस तरह से लाओ की किसी को पता न चल सके |”
उनमे से कुछ शिष्य बोले, “गुरुदेव परन्तु हमारे माता-पिता के पास तो नहीं है |”
“कुछ भी ले कर आओ अपने घरो में से परन्तु ध्यान रहे की किसी को पता न चले वरना मेरे श्रम से मर जाऊगा |”
यह सुन कर सही शिष्य अपने अपने घर की तरफ चल पड़े | अगले दिन से ही सभी शिष्य अपने अपने घरो में से कुछ न कुछ लाना सुरु कर दिया | और कुछ ही दिनों में आश्रम में बहुत सारी सामग्री इकठी हो गई |s
सभी शिष्यों में एक शिष्य ऐसा भी था जो अभी तक कुछ भी नहीं ले कर आया था अपने घर से | आचार्य ने उससे पूछा,”क्या तुम्हरे घर में ऐसा कुछ भी नहीं है जो तुम आश्रम नहीं ला सकते |”
“जी गुरुदेव मेरे घर में ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो की में आश्रम आ सकू |” शिष्य बोला
आचार्य ने बहुत हेरानी वाली निगाहों से उसे देखा और पूछा, “क्या मतलब है तुम्हारा, ला नहीं पा रहा हु | और कटु शब्दों में बोले, तुम गुरु सेवा करना ही नहीं चाहते हो |”
यह सुनते ही शिष्य बोला, “नहीं नहीं गुरुदेव, ऐसा नहीं है | में तो आप की शिक्षा का ही पालन कर रहा हु | आप ने ही तो कहा था की कोई ऐसी वस्तु लाओ, जिसे उठाते समय कोई देख न सके | मेने बहुत कोशिश की कोई मुझे न देख सके, परन्तु ऐसा कोई स्थान ही नहीं है |”
आचार्य बहुत आश्रयचकित थे की ऐसा कैसे हो सकता है की ऐसा कोई स्थान नहीं है जहा तुम्हे कोई देख न रहा हो |
तब शिष्य ने बोला, ‘गुरुदेव आप ने ही तो कहा था की भगवान हर जगह है और वो हर किसी को देखते है |वे संसार की प्रत्येक वस्तु में है | तो आप ही बताइए की ऐसा स्थान कहा है जहा ईश्वर न हो | इसलिए गुरुदेव में चाह कर भी कुछ नहीं ला पा रहा हु |”
यह सुनकर आचार्य खड़े हो गए और उस शिष्य को अपने गले से लगा लिया और बोले, “वत्स, तुम ही मेरे सच्चे शिष्य हो | मेरी शिक्षा सफल हुई | मझे धन की कोई आवश्यकता नहीं है में तो सिर्फ तुम्हारी परीक्षा ले रहा था और जिसमे तुम अवल आए हो |
सीख: चोरी करना पाप है | कोई देखे या न देखे परन्तु ईश्वर हर किसी को देख रहा होता है |