भगत सिंह (Bhagat Singh) – क्रांति का दूसरा नाम शहीद भगत सिंह

“बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं होती है अपितु क्रांति की तलवार विचारों के पत्थर पर तेज होती है” । यह कथन उस शहीद भगत सिंह की है जिन्होंने अपने प्राणों की चिंता किये बिना ही अपने प्राण को भारत माता को आहुति दे दी थी ।

आजकल के युवा भगत सिंह को अपना आदर्श मानते हैं । लेकिन आज के युवा को सिर्फ भगत सिंह के बलिदान की जानकारी है ना कि उनके विचारों के बारे में ।

तो चलिए सरदार भगत सिंह से जुड़ विचार और उनके जीवन से जुडी जानकारी को हम इस लेख के माध्यम से आपके साथ सांझा करे ।

सरदार भगत सिंह कौन है ?

यदि एक शब्दों में कहा जाए तो भगत सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया । इसके लिए वह एक पल के लिए भी अपने विचारों से विमुख नहीं हुए ।

उनके विचार ही उनके कर्तव्य थे । वह अपने कर्तव्य पालन से कभी नहीं चूकते थे और ना ही अपने आदर्शों से ।

आज हम भगत सिंह को हम सिर्फ जानना चाहते हैं मानना नहीं चाहते हैं ।

स्वंत्र भारत के लिए भगत सिंह ने अंग्रेजों से डटकर मुकाबला किया और एक पल के लिए भी नहीं घबराए कि मेरे माता-पिता का क्या होगा ? उनके लिए राष्ट्रप्रेम से बढ़कर कुछ नहीं था ना मां का प्रेम, ना पिता का प्रेम ।

भगत राष्ट्रप्रेम के लिए सदैव तत्पर रहते थे उन्होंने कहा था कि हमारा आंदोलन अंग्रेजों के साथ साथ बड़े पूंजीपतियों से भी है क्योंकि पूंजीपति किसानों का बहुत शोषण करते थे जिसके परिणाम स्वरूप किसान कर नहीं दे पाते थे ।

भगत सिंह ने अपने जीवन को किसानों भारत माता के लिए समर्पित कर दिया था ।

सरदार भगत सिंह (Bhagat Singh) का जन्म कब हुआ था ?

शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिला के बंगा गांव में हुआ था । वह अपने जन्म के पश्चात से ही बहुत नटखट स्वभाव के थे और साथ ही था जिद्दी थे ।

उनके जिद्दी स्वभाव के कारण उनके माता पिता जी बहुत भयभीत रहते थे । क्योंकि आए दिन वह किसी न किसी पूंजीपति से अपने हक के लिए लड़ जाते थे ।

भगत सिंह के माता पिता को हमेशा यह भय रहता था कि मेरे पुत्र को कुछ हो ना जाए इसी भय के नाते वह भगत को शादी के बंधन में बाँधना चाहते थे । लेकिन भगत सिंह ने अपना जीवन राष्ट्र के प्रति समर्पण कर दिया । उनका सोचना था की जीवन तो सब जीते हैं लेकिन मैं राष्ट्र के लिए कुछ करना चाहता हूं ।

शहीद भगत सिंह (Bhagat Singh) के माता-पिता का नाम क्या है ?

शहीद भगत सिंह के माता का नाम विद्यावती कौर है और पिता का नाम सरदार किशन सिंह है ।

सरदार किशन सिंह एक किसान थे और उनकी माता एक गृहिणी थी। उनके माता-पिता शहीद भगत सिंह से बहुत प्रेम करते थे लेकिन भगत सिंह का राष्ट्रप्रेम देख वह बहुत भयभीत हो जाते थे कि मेरे पुत्र को कुछ हो ना जाए इसी भय से वह अपने पुत्र को बाहर कहीं नहीं जाने देते थे ।

भगत सिंह से सम्बंधित रोचक तथ्य –

जन्म28 सेप्टेंबर 1907
माता – पिताविद्यावती कौर और सरदार किशन सिंह
हाइट5 फुट 9 इंच
विचारधारावामपंथी
मृत्यु23 मार्च 1931
प्रेरणा स्रोतलाला लाजपत राय
प्रभावित विचारसचिन्द्र नाथ सान्याल
बुकमैं नास्तिक क्यों हूँ।
पार्टीनौजवान भारती सभा
जेललाहौर सेंट्रल जेल

शहीद भगत सिंह (Bhagat Singh) का व्यक्तिगत जीवन कैसा है ?

शहीद भगत सिंह के जीवन पर सचिंद्र नाथ सन्याल की बुक “बंदी जीवन” का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा । जिसके परिणाम स्वरूप भगत सिंह क्रांति की ओर अग्रसर हो गए । उनका क्रांति के लिए अग्रसर होना का मुख्य वजह महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन को वापस लेना था ।

भगत सिंह अब जान गए थे कि भारत अहिंसा से आजाद नहीं होने वाला है इसके लिए हमें हिंसा का मार्ग अपनाना होगा । भगत सिंह ने सर्वप्रथम नौजवान भारत सभा की स्थापना की जिसमें नौजवान युवाओं को शामिल किया जाता था और जो कठिन समय में भगत सिंह की मदद कर सके और साथ ही साथ देश को आजाद कराने में भी अपना योगदान दे सके ।

भगत सिंह गरम दल के थे । उनका मानना था कि पहले लात फिर मुलाकात फिर बात उनके आदर्श थे ।

लाल बाल पाल, गरम दल के प्रमुख नेता थे । जिनमें लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल थे । वह इनसे बहुत प्रभावित हुए और अपने विचार विमर्श अक्सर लाला लाजपत राय से करते थे ।

इसके बाद भगत को सबसे गहरा आघात तब लगा जब साइमन कमीशन का विरोध करते हुए लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गई । जिसके परिणाम स्वरूप भगत सिंह बहुत क्रोधित हुए । इसके पश्चायत भगत ने लाठीचार्ज को नेतृत्व करने वाले की मारने की कसम खा ली ।

फिर 17 दिसंबर 1928 को जब शाम के 4:00 बज जेपी सांडर्स जब अपनी कार में बैठने वाले थे तब सांडर्स को पहली एक गोली सुखदेव ने मारी फिर लगातार तीन-चार गोली भगत सिंह चलाकर, सांडर्स को वही धराशाई कर उधर से फरार हो गए थे ।

आखिर साइमन कमीशन का विरोध क्यो हुआ था । साइमन कमीशन के विरोध की वजह इसके 7 सदस्य थे जो की सातों के सात विदेशी थे । जिसके चलते लाला लाजपत राय ने इसका विरोध किया था ।

साइमन कमीशन भारत में ब्रिटेन के शासन का मूल्यांकन करने के लिए आई थी जिसमे एक भी भारतीय नहीं होना इसकी विरोध की वजह रही ।

यही लाला लाजपत राय साइमन कमीशन गो बैक का नारा दिया था । और उसी दौरान सांडर्स के आदेश पर उनके ऊपर लाठी चार्ज का आदेश के फलस्वरूप लाला लाजपत राय की मृत्यु हो जाती गयी थी ।

शाहिद भगत सिंह (Bhagat Singh) ने भारत को स्वतन्त्र कराने के लिए कौन-कौन से कदम उठाए ?

भगत सिंह जब सांडर्स को मारकर फरार हुए तब उनकी मुलाकात चंद्र शेखर आजाद से हुई । चंद्रशेखर आजाद के विचारों से शहीद भगत सिंह बड़े प्रभावित हुए और उन्होंने अपने पार्टी “नौजवान भारत सभा” का विलय चंद्रशेखर आजाद की पार्टी “हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन” से कर दिया । जिसके बाद पार्टी का नाम “हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन” हो गया।

इस पार्टी का उद्देश्य था गरीब व्यक्तियों की सेवा और देश के लिए ऐसे युवक को तैयार करना जो पीड़ा झेल सकने में सक्षम हो ।

हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन ने ही काकोरी कांड को अंजाम दिया था । यह कांड एक लूटपाट वाला कांड था जिसमें काकोरी जा रही ट्रेन में से अंग्रेजों का बहुत सारा धन को लूट लिया गया था ।

8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने साथ मिलकर वहां बम फेंका और साथ ही साथ स्वतंत्रता का परिचय भी फेके । लेकिन भगत सिंह बम फेंकने के बाद भागे नहीं चाहते जिसके फलस्वरूप अंग्रेजों ने उन्हें गिरप्तार कर लिया था ।

शाहिद भगत सिंह की मृत्यु (Bhagat Singh Death)

सेंट्रल असेंबली में बम फेंकने के बाद भगत सिंह गिरफ्तार हो गए थे । और उसके बाद लगभग 2 साल तक जेल में रहे ।

भगत ने उस 2 वर्ष में कोई न कोई संपादकीय पत्र लिखते रहते थे । जिसमे वह लिखते थे कि देश की युवा अभी भी वक्त है अपनी चेतना खोलो और देश को आजाद कराने में अपना अहम योगदान दो ।

जेल में रहने के दौरान ही भगत सिंह ने “मैं नास्तिक क्यों हूं” नाम से एक बुक लिखी । इसमें भगत सिंह ने बकायदा वर्णन किया मैं ईश्वर जैसी सत्ता को नहीं मानता अगर ईश्वर जैसी सत्ता होती तो हमारा देश गुलाम नहीं होता । आखिर ईश्वर हमसे क्यों भेदभाव कर रहा है? हमने किसी के साथ क्या गलत किया है आदि प्रश्नों का इसमें तर्क विश्लेषण के साथ समावेश है ।

भगत सिंह गुरुमुखी लिपि और हिंदी के साथ ही साथ उर्दू ,अरबी के अच्छे जानकार थे । उन्होंने उर्दू, अरबी और हिंदी का ज्ञान बटुकेश्वर दत्त के शरणागत में ही सीखा ।

भगत सिंह जेल में हो रहे कैदियों के साथ अन्याय से बड़ा आहत हुए । उसी दौरान भगत सिंह अनशन पर बैठ गए और साथ ही साथ जतिंद्र नाथ दास भूख हड़ताल पर बैठ गए । यह भूख हड़ताल जेल में ही 64 दिन तक चला जिसके दौरान ही जतिंद्र नाथ दास की मृत्यु हो जाती है ।

फिर 23 मार्च वह काला दिन आता है जब भगत सिंह को राजगुरु तथा सुखदेव के साथ फांसी के तख्ते पर लटका दिया गया था । अंग्रेजों ने भगत सिंह के शव को माता-पिता को नहीं सौंपा । उनके शव के साथ क्रूरता का व्यवहार किया और उनके शव को कई भागों में विभाजित करके एक बोरी में भरकर एक नदी में फेंक दिया जाता है ।

जिसको बाद में नदी से लाके हिंदू धर्म के नियमों के अनुसार शहीद भगत सिंह का दाह संस्कार किया गया था ।

शाहिद भगत सिंह (Bhagat Singh) से सम्बंधित कुछ विवादित प्रश्न –

शहीद भगत सिंह की मृत्यु के उपरांत गांधीजी के ऊपर यह आरोप लगा कि यह गांधीजी चाहते तो शहीद भगत सिंह को बचा लेते आइए हम जानते हैं कि गांधी जी ने शहीद भगत सिंह को क्यों नहीं बचाया ? इसके पीछे क्या कारण था ।

गांधीजी ने भगत सिंह (Bhagat Singh) को क्या नही बचाया ?

गांधी जी ने भगत सिंह को इसलिए नहीं बचाया क्योकि भगत सिंह की विचार हिंसा वाले थे । वही गांधीजी के विचार अहिंसा वाले थे । ऐसे में विचारो के टकराव की वजह से गांधी जी ने भगत सिंह को नहीं बचाया ।

भगत सिंह की मृत्यु के बाद 29 मार्च 1931 को कराची अधिवेशन के दौरान गांधी जी को युवाओं ने काला झंडा दिखाया ।

जब 5 मार्च 1931 को गांधी इरविन समझौता हुआ तो उस समझौते में यह लिखा गया था कि हिंसात्मक अपराधियों के अतिरिक्त सभी राजनीतिक कैदी को छोड़ दिया जाएगा । गांधीजी चाहते तो लार्ड इरविन समझौते में हिंसात्मक अपराधियों को छुड़वा लेते और उसके साथ भगत सिंह भी छूट जाते । लेकिन गांधीजी जी ऐसा नहीं किया उसके पीछे कारण था उनका अहिंसा का आदर्श ।

उम्मीद करते है की आप शहीद भगत सिंह से जुडी सभी जानकारी से अवगत हुए होंगे । आपके कोई सवाल या सुझाव हमसे जरूर शेयर करे ।

 

Leave a Comment