कहा गये वो सुंदर फूल
कहा गई वो मुस्कान
कहा उड़ गई सारी धुल
क्यों चुप हो गए गाने
झूले अब थम से गए
पिता खड़ा खामोश है
मेंदान भी जम से गए
हर घर आगन मदहोश है
बहुत ढूँढा तो पता चला कि
वो सब बच्चे वहा है
जहा पर खुशिया बेरंग है
बचपन जीना मना है
वहा बच्चो से बंगले बनवाये जाते है
चुड़ीयाँ, कंगन, बीडी भी बनवाई जाती है |
यही सही वक्त है कुछ करने का, कुछ बदलने का,
क्योकि कोमल बच्चे जूझ रहे है
कष्ट भरे अंगारों में, और रोते है अंधरे में
बंद करो ये बाल श्रम
बच्चो का यह क्रूर समझोता
नहीं रहगा कोई भी बच्चाइसकी आड़ में अब रोता
बंद करो बाल श्रम
very inspiring
:”) really immotional !!
wonderful poem
inspiring poem
immotional poem
goood job
wow wonerful
Its really very ininspiring there is really need to change the world
I love this poem so much
From my depth of my heart i thanks to poet of this poem