अभ्यास का फल

बहुत पुरानी बात है एक राजा जिसका नाम हरीश नाथ था उसको शिकार का बहुत शोक था | वो ज्यादा से ज्यादा वक़्त अपने दल – बल के साथ शिकार पर ही रहता था | वो अपने शिकार पर हमेशा अपनी दासी हेमा को ले जाना नहीं भूलता था जब भी राजा शिकार से थका हारा आता तो दासी फितना उसकी सेवा करती |

एक बार की बात है राजा अपने शिकार से दोरान अपने साहस और निशानेबाजी का प्रदशन कर रहा था क्योकि उस दिन वो अपने शोर्य और कोशल की प्रंशसा सुनना चाहता था वह खड़े सभी ने राजा के शोर्य और कोशल की बहुत तारीफ की | परन्तु हेमा सिर्फ प्रभावित हुई उसने राजा की प्रंससा नहीं की |

हेमा ने कहा, “महाराज, शिकार खेलते – खेलते बहुत साल हो गए है और आप को बहुत अभ्यास भी हो गया है | इसलिए तो आप इतना अच्छा निशाना लगा सकते हो | में तो इसी साहस को आप की सफलता का कारण मानती हु |

यह बात सुनते ही राजा को बहुत गुस्सा आ गया और उसने अपने सिपाहियों को आज्ञा दी की इसे मार दिया जाए | हेमा ने कहा मुझे थोडा सा समय दीजिए में ये बात साबित कर दुगी और अगर न कर सकू तो फिर मुझे मार देना | यह सुनकर अधिकारियो को दया आ गई और अधिकारियो ने फितनी को गाँव ने घर में छिपा दिया |

हेमा जिस घर में छिपी हुई थी वहा पर एक सीढी थी जिसकी पचास पोडिय थी | हेमा ने अपने आप से वादा कर लिया था की वो अपनी बात को सिद्ध करके दिखाएगी | उसने ने एक नवजात बछड़ा लिया और हर रोज बछड़े को उठा कर वो पचास सीढी चढती और उतरती थी कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा |

कुछ समय बाद उस गाँव में राजा आया और संयोग से राजा के अधिकारियो ने राजा के मनोरंजन उसी घर में किया था | हेमा को इससे अच्छा मोका नहीं मिल सकता था हेमा ने उस बछड़े को उठाया और सीढी पर चढ़ गई, राजा को यह देखकर आश्चर्य हुआ | राजा ने उसे बुलाया और यह देखकर हेरान हुआ की वह उसकी दासी हेमा थी |

राजा ने कहा, “तुम बहुत साहसी हो “|

हेमा ने कहा, “महाराज जी या साहस की बात नहीं है यह तो बस मेरा अभ्यास का फल है |”

राजा को अपनी भूल का अहसास हु और मुस्करा दिया और उसे फिर से मुख्य दासी का दर्जा दिया और अपने साथ महल ले गया |

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