आलस की सजा

शीत ऋतू का दिन था और एक झींगुर मस्ती में बेठा धुप सेक रहा था वह बहुत भूखा था क्योकि उसने फिछले दो दिनों से कुछ नहीं खाया था | वह अपने घर से निकला कुछ खाने के लिए और कुछ ही देर बाद उसे एक डाली पर चींटियो का झुंड दिखाई दिया जो अपना भोजन ले कर अपने बिल में ले जा रही थी |

झींगुर चींटियो के पास जा कर बहुत ही प्यार से बोला, “क्या आप मुझे अपने खाने में कुछ खाना दे सकते हो क्या? मेने कल से कुछ नहीं खाया | तथा भूख के कारण मेरा दम निकले जा रहा है |

चीटिया छन भर के लिए रुक गई और उनमे से एक चीटी ने झींगुर से पूछा, “तुम गर्मियों की ऋतू में क्या करते रहे, क्या तुम ने अपना खाना नहीं इकठठा किया, जो तुम हम से मांग रहे हो | “

इस पर झींगुर ने उतार दिया, “सही बताऊ तो गर्मियों की ऋतू में गीत ही गता रहा, मुझे खाना इक्ठटा करने का ध्यान ही नहीं आया” तो उस चींटी ने व्यंग करते हुए कहा, “तो अब शीत ऋतू नाचते हुए बिताओ” | और यह बात सुनकर झींगुर वहा से चला गया |

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