मेना की सीख

एक गाँव में एक परिवार रहता था उस घर में दो बच्चे थे एक लडकी और एक लड़का | लडकी का नाम हेमा और लडके का नाम रवि था |

एक दिन की बात है निधि अपने दोनों बच्चो के साथ अपने घर के आंगन में खड़ी थी उसने पेड़ पर एक मेना को देखा और अपनी बेटी को कहा, बेटा जाओ और रसोई में से एक रोटी ले आओ |

हेमा रोटी ले आई और अपनी माँ को दे दी | निधि ने उस रोटी के टुकड़े किये और पेड़ के पास बिखेर दिए | मेना ने रोटी के टुकड़े देखे और अपने साथियों को कांव – कांव आवाज लगाई अपनी साथियों को | आवाज सुनकर आस पास के सभी कुए उसके पास आ गए और सभी मिल कर रोटी के टुकड़े खाने लगे |

हेमा ने माँ से पूछा, “माँ, इसने अपने साथियों को क्यों बुलाया, ये सारी रोटी खुद भी खा सकता था”

निधि, “हेमा तुम ने बहुत अच्छा प्रशन पूछा है | बेटा वह रोटी अकेले नहीं खाना चाहता था और वह चाहता था की उसके बाकि साथी भी भेखे ने रहे और इसलिए उसने कांव – कांव करके अपने बाकि साथियों को भी बुला लिया ताकि उनका पेट भी भर सके |

यह सुनकर बेटा रवि बोला, “माँ, तो क्या हमे भी अकेले नहीं खाना चाहिए ?”

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सोने का कुत्ता

बहुत पुरानी बात है एक बार एक राजा ने अपनी तीनो बेटो में से किसी एक को अपना उतराधिकारी चुनने का फेसला किया और इसी के चलते उसने तीनो की परीक्षा लेने की सोची | उस राजा ने अपनेतीनो बेटो के १०० – १०० सोने की मुद्राए देकर उसने उन्हें आज्ञा दी की जो उसे एक साल के अंदर अंदर सबसे फहले सोने का कुत्ता ले कर आयगा उसे में अपना उतराधिकारी गोषित कर दुगा |

सबसे बड़े राजकुमार ने एक शहर में जा कर एक महल किराये पर लिया और अपने कुछ आदमियों को चारो दिशाओ में भेज दिया उस सोने के कुत्ते की खोज में | परन्तु सब के सब कुछ सप्ताह के बाद सभी लोग खाली हाथ आ गए | तब तक बड़े राजकुमार के सारे पैसे खत्म हो गए और वह वापिस चला गया |

वहा दूसरी तरफ दुसरे राजकुमार एक शहर में जा कर एक महाजन बनकर लोगो को सूद पर पैसे देने लगा | और जल्दी ही उसे बहुत सारे पैसे कम लिए और उसने अपने पिता को दोनों के लिए सोने का कुता बनाने के लिए सुन्हार को दे दिया |

अब बारी थी छोटे बच्चे की | वह एक शहर में गरीब समुदाय के बीच एक छोटा-सा घर लेकर रहने लगा | उसने अपना पूरा पैसा एक व्यपार में लगा दिया जिससे उसकी बहुत अच्छी कमाई हो गई की उसने बहुत से गरीब लोगो को काम पर रख लिया | उसने अपने कमाए पैसो से न सिर्फ गरीबो को काम दिया अपितु स्कुल, अस्पताल के अलावा कार्य किये | साथ ही साथ उसने गरीब लोगो को सस्ते दर पर कर्जा देना भी आरंभ कर दिया | इससे वे लोग जल्दी ही खुशहाल हो गए | बल्कि पूरा खुशहाल हो गए थोड़े दिनों में | अपने काम से संतुष्ट होकर वह अपने पिता से मिलने चल दिया |

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