कीमत बचपन की

ज़िंदगी की कीमत चुकाता बचपन .., झूठन से भूख मिटाता बचपन …! बेचैनी के बिस्तर पे करवट बदलता .., फूटपाथ पे सपनें सजाता बचपन …! पत्थर के टुकड़ों मैं खिलोने देखता .., नन्हे से दिल को समझाता बचपन …! भीख क कटोरे मैं मजूबूरी को भरकर .., ज़रूरत की प्यास बुझाता बचपन …! कही पिज़्ज़ा, … Read more

बुरी संगती से छुटकारा

श्याम दास का एक ही पुत्र था | उसका नाम रवि था | श्याम दास अपने बेटे को बहुत करता था | वह उसे हर अच्छी से अच्छी जीजे ला कर देते | हर वो जीज ला कर देता जो उसे चाहिए होती | उसकी हर मांग पूरी करता था |

सिर्फ वो ही नहीं बल्कि रवि की माँ भी उसे बहुत प्यार करती थी | वह उसे माखन, मलाई खिलाकर खुश करती थी | परन्तु रवि को इस सब की कदर नहीं थी क्योकि वो बुरी संगत में पड़ गया था | जुआ खेलना, दोस्तों के साथ बजारों में घूम न और बाहर का खाना पीना |

रवि के माता-पिता ने बहुत समझाया | परन्तु रवि पर कुछ असर न हुआ | तब उसके पिता ने उसे समझाने का एक उपाय सोचा |

एक दिन रामदास ने रवि को पांच रूपये का नोट दिया और कहा – “बेटा, बाजार से पांच रूपये के सेब मोल ले आओ |”

रवि बाजार जाकर पांच रूपये में सात सेब खरीद लाया | सेब ताजा और अच्छे थे | तब पिता ने पचास पैसे और देकर कहा – “जाओ बाजार से एक सडा – गला सेब खरीद लाओ |”

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कठिन प्रशन

बादशाह अकबर के शाही दरबार की कार्यवाही स्थगित हो गई थी | सभी दरबारी और महाराज जाने ही वाले थे की तभी एक सुरक्षाकर्मी भागता हुआ आया और बोला, “महाराज, दक्षिण भारत से एक विद्वान पंडित अभी अभी पधारे है वह आपसे ओर बीरबल से तुरंत मिलने के उत्सुक है | वह इसी उदेश्य से आगरा आये है |

“इस प्रकार उन्हें प्रतीक्षा कराना उचित नहीं है, उन्हें तुरंत शाही दरबार में लाया जाये |” बादशाह ने आदेश दिया |

जैसा ही सुरक्षाकर्मी पंडित को लेने के लिए चला गया तो बादशाह बोले, “बीरबल, अब बहुत देर हो चुकी है और में बहुत थक गया हु | तुम ही विद्वान पंडित से मिल लो और पता करो की वह कहना क्या चाहते है ?” बीरबल ने सर हिलाकर हामी भर दी |

पंडित के आने पर दोनों ने एक दुसरे को अभिवादन किया | उन्होंने बीरबल से कहा, “बीरबल मेने तुम्हारी बुदिमता के विषय में बहुत कुछ सुना है | में तुम्हारी परीक्षा लेना चाहता हु |,” मुझे बताओ , क्या में तुमसे सो सरल प्रशन पूछु या फिर एक कठिन प्रशन?”

बीरबल ने सोचा, “महाराज थक चुके है और विश्राम के लिए जा चुके है| सो प्रशनो का जवाब देने का समय नही है|” इसलिए बीरबल ने कहा, “पंडित जी, आप सिर्फ एक कठिन प्रशन पूछिए |”

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वीर बालक

सर्दियों के दिन थे | सवेरे का समय था | उस दिन राम अकेला ही अपने स्कूल जा रहा था | उसके स्कूल के रास्ते में रेल की पटरी पड़ती थी | उस दिन उसने देखा की एक जगह से रेल की पटरी उखड़ी हुई थी |

बालक तुरंत समझ गया की यह एक बहुत बड़ी बात है जिसका भयंकर परिणाम हो सकता है | वह सोचने लगा, “अभी गाड़ी आएगी | वह यहाँ पर गिर जाएगी |

और उसी समय दूर से गाड़ी के इंजन की चीख सुनाई दी | फिर गाड़ी की धडधड की आवाज सनाई दी | बालक सुनते ही काप उठा | वह सोचने लगा की क्या करे? उसने ठान लिया था की वह उन सभी लोगो की जान बचाएगा जो उस गाड़ी में बैठे है |

अब गाड़ी और पास आ गई थी | राम तभी दोनों पटरियों के बीच में खड़ा हो गया | उसने अपनी जान की परवाह नहीं की | उसने तुरंत अपनी सफेद कमीज उतारी और जोर जोर से हिलाने लगा |

ड्राईवर की नजर उस बालक पर पड़ी | उसने झट से ब्रेक लगा दी | और इंजन थोरी सी ही पहले आ कर रुक गया | ड्राईवर ने गुस्से से उसे पूछा – “ओये लडके ये क्या कर रहा है मरना है क्या?”

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पांड्वो की गेंद

जैसा की हम सभी जानते है की पांडव पांच भाई थे | एक दिन पांचो भाई मैदान में गेंद खेल रहे थे | अचानक गेंद उछली और पास के एक कुए में जा गिरी | खेल बंद हो गया |

अभी वे बच्चे ही तो थे इसलिए वो सभी बहुत दुखी हुए | वे सोचने लगे की अब गेंद को कुए से बाहर कैसे आएगी |

पांचो पांडव कुए में झाकने लगे | गेंद पानी के ऊपर तेर रही थी परन्तु कुआ बहुत गहरा था उसमे उतरने का साहस किसी में न था | इतने में वहा से एक ऋषि जा रहे थे | बालको को उदास देखकर उनसे उनकी उदासी का कारण पूछने लगे |

तभी उनमे से एक भाई ने कहा – मुनिवर, हम लोग यहाँ पर गेंद खेल रहे थे और फिर गेंद कुए में जा गिरी | परन्तु हम उसे निकल नहीं पा रहे है | इसलिए हम सभी लोग बहुत उदास है |

ऋषि ने बोले बस इतनी सी बात – “लो में अभी तुम्हरी गेंद निकाल देता हु |”

इतना कहा कर ऋषि ने अपना धनुष निकला और बाण चढाया और कुए में छोड़ दिया | और वह बाण गेंद में लग गया और फिर ऋषि ने दूसरा बाण और फिर तीसरा बाण और फिर बाण पर बाण छोड़े |अंत में ऋषि ने ऊपर वाले बाण को पकडकर ऊपर खिंचा और गेंद को कुए के बाहर निकला |

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